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Friday, November 7, 2008

वो नझरे भी मिलाते है और आंखे भी चुराते है

वो नझरे भी मिलाते है और आंखे भी चुराते है
जब भी मिलते है वो, तब ऐसे ही शरमाते है

बीना मिले उन्हे हम रेह नही पाते
जब मिलते है, कुछ केह नही पाते
वो हमारी आंखो को पढ लेते है
फ़ीर आंखो से ही सब केह जाते है
खामोशीयो मे वो याद आते है
बातो में भी वो चले आते है

जब आंखो को बंध करके हम सो जाते है
तब चुपके से आके वो सपन मे समा जाते है.

सपन
१९.१०.२००८

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